ये शतरंज ही कुछ और है


हर तरफ खौफ है
दूरियों का ज़ोर है
बिन गुनाहों के बेडियाँ
ये शतरंज ही कुछ और है

ना हुआ फरमान जारी
ना जंग की कोई तैयारी
पर रण पे हम मौजूद हैं
सूझ रहें अगली बाज़ी

की चाल कोई ना चले
कोई किसी से ना मिले
मोहरे सभी हैं एक तरफ
दुश्मन के हम सब हैं किले

जो एक प्यादा गिर गया
तो बगल भी फिर फस गया
गिला किसी से क्या करें
हर शक्स चंगुल में है धसा

दौड में जो थे जुटे
तनाव से कुछ हैं हटे
जिन्दगी में नये रंग भरकर
अपनी देहलीज़ों से सटे

हर घर का एक वज़ीर अपना
हर घर का एक राजा
मात हर दिन कितने घरो में
हो रही है क्या पता

या तो मार देगी ये बिमारी
या नही तो बेरोजगारी
वो जो हर दिन का जोडते थे
मीलों के वो मजबूर राही

इंसानियत वाक़िफ़ नही
इस कहर के अंजाम से
ना जीत है ना हार है
हर मोहरा एक राज़ है

ये क़ायदे कुछ और हैं
ये सज़िशें कुछ और है
बिन गुनाहों के बेडियाँ
ये शतरंज ही कुछ और है





















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